-आधा दर्जन देशों में इजिप्सन आर्ट को पहुंचाकर कर चुके हैं ख्याति प्राप्त
हिन्दुस्तान तहलका / दीपा राणा
सूरजकुंड / फरीदाबाद
37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेला शिल्पकारों को अलग पहचान दिलाने का एक प्लेटफार्म है। जहां देश-विदेश के प्रख्यात हुनरमंद शिल्पी अपनी कला से पर्यटकों को परिचित करवाते हैं। देश व विश्व के अलग अलग हिस्सों से आए शिल्पकार अपने बेहतरीन उत्पाद मेले में पर्यटकों के लिए उपलब्ध करवा रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं राजस्थान के जयपुर से आए शिल्पकार दंपत्ति भागचंद और सुमित्रा देवी, जिनकी स्टॉल पर जैम स्टोन व इजिप्सन कला में एक से बढक़र एक आइटम उपलब्ध है। दसवीं पास शिल्पकार भागचंद ने कनाड़ा के शिल्पकार से दस साल पहले इजिप्ट कला की बारीकियां जानी और खुद इजिप्सन की नई कला को जन्म देकर दुनिया के आधा दर्जन देशों तक पहचान दिलाने में कामयाब रहे। वे अपनी इस शिल्पकारी के लिए बेस्ट आर्टिजन, बेस्ट प्रोडक्ट और मास्टर अवॉर्ड भी प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने राजस्थान मेें पाए जाने वाले जैम स्टोन से बनाए उत्पादों को देश भर में नई पहचान दिलाई।
जैम स्टोन से बनाते हैं विभिन्न उत्पाद
शिल्पकार भागचंद ने जानकारी देते हुए बताया कि उनके पिता मजदूरी के साथ-साथ बढई का कार्य करते थे। उन्होंने अपने पिता से कला की बारीकी सीखी और दसवीं पास करने के बाद आजीविका कमाने के लिए सब्जी बेचने का कार्य शुरू किया। भागचंद ने धीरे धीरे जैम स्टोन से छोटी छोटी आकृति बनाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि जयपुर में मिलने वाला जैम स्टोन डायमंड सिटी सूरत तक सप्लाई होता है। इस स्टोन से वह लेटर होल्डर, की-होल्डर, ट्रे, तस्वीर, डायरी, ज्वैलरी बॉक्स, गिफ्ट आइटम आदि उत्पाद बनाते हैं। उन्होंने बताया कि पत्थरों की सलौटी को लोहे के औजार से पीसा जाता है। इसके पश्चात उसे छानकर सबसे बारीक कण एकत्रित करके पेन से आकार बनाकर उसमें लिक्विड डालकर उसमें पत्थर के पिसे बुरादे को डालकर जैम स्टोन पेंटिंग को आकार देतेे हैं। इस कला में उन्हें वर्ष 2005 में मुंबई में बेस्ट प्रोडक्ट, 2013 में कोलकाता से बेस्ट आर्टिजन और वर्ष 2023 में कोलकाता से मास्टर अवॉर्ड मिल चुका है।
विदेशी से सीखे हुए कला के गुर को किया मशहूर
भागचंद ने बताया कि करीब दस साल पहले सूरजकुंड मेले में कनाडा से आए एक शिल्पकार से उन्हें इजिप्ट कला की बारीकियां सीखने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने स्वयं इस कला में अपना हाथ आजमाया। उन्होंने बताया कि कॉपर सीट को गरम करके उसे मुलायम बनाया जाता है। इसके बाद औजार से ठोक कर अलग-अलग प्रकार के आकार का रूप दिया जाता है। कॉपर के बुरादे से ही उसमेें पॉलिश की जाती है। इजिप्ट आर्ट की एक आकृति को बनाने में उन्हें करीब डेढ़ से दो दिन का वक्त लगता है। अपनी इजिप्सन कला को भागचंद जर्मनी, जापान, कनाडा, सिंगापुर, मलेशिया, दुबई आदि देशों तक पहुंचाकर ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। भागचंद अब एसएचजी के मास्टर ट्रेनर बन चुके हैं। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वे 25 से 30 महिलाओं को इस काम से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।