जानिए बिहार में क्यों बहुत प्रसिद्ध है छठ पूजा ?
बिहार, बिहारी और छठ

छठ- छठ क्या है ?
ये उस बिहारी से पूछो जिसने अपने जीवन के शुरुआती २०-२२ साल गांव और परिवार में बिताया हो और उसके बाद आजीविका के लिए परदेस में रह रहा हो।
वो शब्दों में आपको छठ क्या है, न तो बता सकता है और ना ही आप समझ सकते हो। छठ का गीत बजते ही उसके रोएं खड़े हो जाते हैं और आंखों के कोने से आंसू की कुछ बूंदें अपने आप ही लुढ़क जाती हैं, जो वर्षों से हृदय के किसी कोने में जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी रहती हैं।
बिहार/ यूपी वालों के लिए छठ सिर्फ एक त्योहार नहीं होता, बल्कि एक भावना होती है। जिसके सहारे वो जिंदा रहते हैं और जो उनको ज़ीने और जूझने का संबल देती है। पेट के सवाल ने भले ही करोड़ों बिहारी को घर से दूर कर दिया लेकिन यह आत्मा , यह मन , यह दिल कैसे अपने गांव और गांव के छठ को भूल सकता है ? एक जोर की हुक उठती है सीने में । वो गांव का पकवा इनार, वो गांव का घाट, वो गांव का स्कूल , वो गांव का खेत , वो खेत का गन्ना,वो ब्रह्म बाबा , और मालूम नही क्या क्या ।
छठ का एक एक सामान, हर एक विधि आपको प्रकृति से जोड़ती है
ना किसी मिठाई की जरूरत है ना ही किसी पंडित की। नदी, पानी, मिट्टी, गन्ना, ठेकुआ, सूरज देव और छठी मैया, बस आप पहुंच गए* आस्था और विश्वास के सबसे गहरे और विशाल संसार में जहां न केवल उगते सूरज आराध्य हैं बल्कि डूबते सूरज भी उतने ही पूजनीय हैं। डूबते सूरज की आराधना हमें बताती है कि जिसने पूरी जिंदगी हमारे जीवन में रोशनी दी, जब उसके अस्त का समय हो रहा है तो हमें उसके साथ होना चाहिए और कृतज्ञ होना चाहिए। काश यही सीख हम अपने जिंदगी में उतार ले तो कई सारी चीज़े अपने आप ठीक हो जाये।
छठ से जुडी हर एक चीज का अपना महत्व और सांकेतिक प्रभाव है समाज में
समाज के सबसे निचले तबके के यहां से बांस का बना पवित्र सूप और दऊरा से ही डूबते और उगते सूरज की पूजा होती है। मिटटी के बर्तन ,मिटटी का चूल्हा जो कुम्हार बनाता है , कंद मूल किसान देता है। ये सब हमें समाज के हर तबके से जोड़ते है। खेतो में उगे हुए मूली ,सूथनी , हल्दी,गन्ना आदि जड़ं से जुड़े हुए कंद मूल जो पूजा के लिए जरुरी सामान है वो किसान और प्रकृति से जोड़ते है। आज भले ही बाजारवाद हावी हो रहा हो लेकिन छठ की पवित्रता और श्रद्धा आज भी देखी जा सकती है जब अपार्टमेंट कल्चर में रहने वाले भी दातून ढूढ़ते है और पुआल न मिलने पर फर्श के ऊपर नई बिछावन लगा कर सोते है। ये चार दिन समस्त बिहार और विश्व में फैले सभी बिहारी परिवार स्वयं को तन और मन से पवित्र समझते हैं ।
शायद ही इससे पौराणिक कोई अन्य पूजा हो, भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के कालखंड में भी श्रद्धापूर्वक भगवान भास्कर की पूजा की जाती थी। कई पुराणों व उपनिषदों में भी इस पर्व के महत्व का वर्णन किया गया है। छठ ऊर्जा के सबसे बड़े श्रोत सूर्य के डूबते और उगते दोनो रूप की पूजा है , छठ प्रकृति की पूजा है , छठ पानी के स्रोतों की पूजा है चाहे वो नदी हो और तालाब और आजकल स्विमिंग पूल में प्रतीकात्मक जल। आज जब करोडो बिहार और उत्तरप्रदेश के लोग अपने घरो को जा रहे हो और जो नहीं जा पा रहे है उन सबको अपने मिट्टी के इस महापर्व की शुभकामनाएं।।।
लेखक: अवनींद्र तिवारी