भोले के डमरू की गुंज, भस्म से रंगी है काशी की मसान होली

न रंग , न पानी , न गुलाल बाबा विश्वनाथ की नगरी में खेली जाती है चिता की भस्म से होली

भोले के डमरू की गुंज, भस्म से रंगी है काशी की मसान होली

हिंदुस्तान तहलका / हिमानी रानी

वाराणसी । शिव की नगरी काशी में खेली जाती है एक अद्भुत, अलौकिक, अकाल्पनिक चिता की भस्म से होली। सुनने में शयद आपको डर लगे लेकिन  काशीवासी अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाश्मसान पर चिता भस्म के साथ खेलकर होली के पहले इस पर्व की शुरूआत कर देते हैं। इस होली की शुरुआत होली के पर्व से 3 दिन पहले से हो जाती है और पूरे 6 दिनों तक यहां होली होती है। मान्यता है कि शिव शंकर रात को 12 बजे अपने भक्तो के साथ स्वयं होली खेलने महाश्मसान पर आते हैं। इस दिन चिता की भस्म ही बन जाती है भोले और भोले भक्तों  का श्रृंगार। इस होली का आयोजन काशी के महाश्मसान  हरिशचंद घाट पर किया जाता है कहा जाता है कि इस श्मसान पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती। उसी भस्म से काशी के अघोरी एवं शिव भक्त होली खेलते है। चिता भस्म होली को मसान होली भी कहा जाता है। काशी के मसान में होली की ये परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। बताया जाता है कि बसंत पंचमी के दिन भगवान शंकर का तिलक हुआ था और शिव रात्रि के दिन माँ पारवती और शिव शंकर का विवाह हुआ था। प्राचीन मान्यता के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता गौरा का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे। तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी. लेकिन वह श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसलिए रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन शिवजी ने श्मशान में बसने वाले अपने प्रिय भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी, यह एक मान्यता प्राप्त कहानी है और इस कहनी को जीवंत करते है बनारस के शिवभक्त।  हर साल मसाने में जमकर शिवभक्त जोरो सोरो से ये भस्म होली खेलते है। इस गीत में इस होली की झलक महसूस की जा सकती है-

होली खेले मसाने में...

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,

चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनऊ बाधा

ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी

पीटैं प्रेत-थपोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी

भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाए बिरिज की गोरी

धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर, खेलैं मसाने में होरी