बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास और मान्यताएं
बद्रीनाथ धाम, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ हिंदू धर्म का एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है

उत्तराखंड बद्रीनाथ धाम, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ हिंदू धर्म का एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां पर भगवान विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल यह मंदिर चार धामों में से एक है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैर दबा रही थीं, उस समय वहां से एक ज्ञानी संत गुजर रहे थे, जिनकी नजर अचानक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के ऊपर पड़ी। इन्हें देख कर संत जी नाराज हो गए की भगवान विष्णु तो खुद तो लेटे हुए हैं और अपनी पत्नी से काम करवा रहे हैं। महाराज संत द्वारा भगवान विष्णु की इस बात की आलोचना करने पर भगवान विष्णु क्रोधित होकर वहां से चले गए और बद्रीनाथ के क्षेत्र में जाकर घोर तपस्या करने लगे।
इतना सबकुछ देखने के बाद माता लक्ष्मी भी वहां पहुंची और भगवान विष्णु की तपस्या में कोई बाधा उत्पन्न ना हो, इसलिए माता लक्ष्मी ने बेर, जिसे बद्री भी कहा जाता है, के सात वृक्ष धारण कर लिए और भगवान विष्णु की सेवा में लग गईं, ताकि धूप, बारिश और हिमपात से भगवान विष्णु की तपस्या में को कोई बाधा उत्पन्न ना हो।
तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को बेर के वृक्ष में देखा, तो उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि देवी आपने मुझसे अधिक तप किया है, इसलिए मेरे नाम से पहले आपका नाम होगा। माता लक्ष्मी बेर यानी बद्री के वृक्ष का रूप धारण करके अपने पति, जिसे नाथ और स्वामी भी कहा जाता है, भगवान विष्णु को छाया दे रही थीं और यही कारण है कि इस मंदिर को बद्रीनाथ कहा जाता है। क्योंकि बद्री बनी माता लक्ष्मी और उनके नाथ हैं भगवान विष्णु, इसीलिए जो बद्री के नाथ हैं, वही हैं बद्रीनाथ।