आज से शुरू जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा , दो साल बाद इकट्ठे हुए हज़ारों श्रद्धालु

भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक महामहोत्सवों में सबसे प्रमुख और धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्‍वपूर्ण माना गया है।

आज से शुरू जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा , दो साल बाद इकट्ठे हुए हज़ारों श्रद्धालु

हर साल की तरह अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यानि 01 जुलाई 2022 को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ हो रहा है जो कि 12 जुलाई 2022 तक चलेगा. हिंदू धर्म के प्रमुख चार धाम में से एक इस तीर्थ स्थल पर मनाए जाने वाले इस पर्व के बारे में लोगों का मानना है कि इसमें बड़े सौभाग्य वालों को ही शामिल होने का मौका मिलता है. मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने वाले भक्त को सभी तीर्थों के फल मिल जाते हैं. आइए जानते हैं 

भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक महामहोत्सवों में सबसे प्रमुख और धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्‍वपूर्ण माना गया है। यह रथयात्रा न केवल भारत में बल्कि विदेश में भी उन स्‍थानों पर आयोजित होती है जहां पर भारतीयों की आबादी रहती है। भारत में आयोजित होने वाली रथ यात्रा को देखने हर साल विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्‍नाथ जी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। सागर तट पर बसे पुरी शहर में होने वाली जगन्‍नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था का जो भव्‍य उत्‍सव देखने को मिलता है, वह और कहीं दुर्लभ है। इस रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। जगन्‍नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं। साथ ही यहां बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। आइए आपको बताते हैं इस यात्रा का इतिहास और तीनों रथों के बारे में खास बातें...

रथ यात्रा का इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न भगवान जगन्‍नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आए थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। इस मूल मंदिर का कब निर्माण हुआ और यह कब नष्ट हो गया इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल गंगदेव तथा अनंग भीमदेव ने कराया था। परंतु जगन्नाथ संप्रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है।

जानिए क्‍यों इस मजार पर रुकता है जगन्‍नाथजी का रथ

धार्मिक मान्‍यता

इस रथ यात्रा को लेकर धार्मिक मान्‍यता यह चली आ रही है कि एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्‍छा प्रकट की। तो फिर दोनों भाइयों ने अपनी बहन की इच्‍छा को पूरा करने के लिए भव्‍य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे। इसी मान्‍यता को मानते हुए हर साल पुरी में जगन्‍नाथ रथ यात्रा आयोजित होती है।

दस दिवसीय महोत्सव

पुरी का जगन्‍नाथ मंदिर के दस दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्रीगणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण से हो जाता है। कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं

गरुड़ध्वज

जगन्नाथ जी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है। 16 पहियों वाला यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग होता है। विष्णु का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी या नंदीघोष कहते हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा, जानें पुरी के अलावा और कहां-कहां होती है रथ यात्रा

तालध्वज

बलराम का रथ तालध्वज के नाम से पहचाना जाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है। यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है।

पद्मध्वज या दर्पदलन

सुभद्रा का रथ पद्मध्वज कहलाता है। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का प्रयोग होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं। दसवें दिन इस यात्रा का समापन हो जाता है।