कलयुग का श्रवण कुमार विकास, माता-पिता को कंधे पर उठाकर कांवड़ यात्रा लेकर निकला, आंखों पर बांधी पट्टी
गाजियाबाद के रहने वाले विकास गहलोत को कलयुग का श्रवण कुमार कहा जा रहा है। कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में एक बेटा अपने माता-पिता को कंधे पर उठाकर यात्रा कर रहा है।

उत्तराखंड (हिंदुस्तान तहलका): जहां आज के समय में बच्चों को अपने माता-पिता के साथ एक घर में रहना बर्दाश नहीं नहीं है, उन्हे बोझ समझकर वृद्धा आश्रमों में छोड़ देते हैं। वहीं इस कलयुग भरी दुनिया में एक ऐसा भी बेटा है जो अपने माता-पिता को कंधे पर उठाकर कावड़ यात्रा कर रहा है। गाजियाबाद के रहने वाले विकास गहलोत को कलयुग का श्रवण कुमार कहा जा रहा है। कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में एक बेटा अपने माता-पिता को कंधे पर उठाकर यात्रा कर रहा है। विकास, श्रवण कुमार बनकर अपने माता-पिता को कंधे पर उठाकर हरिद्वार से गाजियाबाद अपने घर जा रहे हैं। रास्ते में जो भी उन्हे देख रहा है वो हैरान हो रहा है। विकास का अपने माता-पिता के प्रति प्रेम इसी बात से साबित हो रहा है कि उसने अपने माता-पिता की आंखों पर पट्टी बांधी हुई है, ताकि उसके माता-पिता बेटे के कंधों का दर्द उसके चेहरे पर न देख सकें। विकास ने बताया, "मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैंने अपनी माता-पिता की आंखों पर पट्टी इसलिए बांधी हैं जिससे वह मेरी कठिनाई देखकर परेशान न हों।
उमस भरी इस गर्मी में तपती सड़क पर विकास अपने माता-पिता को लेकर हरिद्वार से सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर तय कर गाजियाबाद अपने घर जा रहे है। रास्ते में जो भी लोग विकास को देख रहे है वो हैरान हो गए है और विकास की तारीफों के पुल बांध रहे है। विकास गहलोत का कहना है कि उनके माता-पिता ने कांवड़ यात्रा की इच्छा जताई थी, लेकिन विकास के माता-पिता की इतनी उम्र नहीं है कि वो पैदल चलकर यात्रा कर सके। इसलिए उसने मन बनाकर दृढ़ निश्चय कर इस तरह से माता पिता को यात्रा करवाने का फैसला किया।
विकास गहलोत और उसके माता पिता ने हरिद्वार पहुंचकर पहले गंगा स्नान किया और फिर उसके बाद कांवड़ जल लेकर पालकी में माता-पिता को बैठाकर वो गाजियाबाद के लिए चल पड़ा। लोहे की मजबूत चादर की बनी पालकी में एक तरफ मां और दूसरी तरफ पिता बैठे हैं। विकास ने पिता के पास 20 लीटर गंगाजल की कैन भी रखी है। श्रवण कुमार बनकर विकास माता-पिता को पैदल ही गाजियाबाद अपने गंतव्य तक लेकर जा रहे हैं। बीच बीच में पालकी को सहारा देने के लिए उसके साथ अन्य दो साथी भी चल रहे हैं।