डबुआ कॉलोनी के नए बूस्टर से नहीं मिलता पानी, मिलता है बस नशा
डबुआ थाने के नजदीक बूस्टर पर नशेड़ियों का पूरा कब्जा

फरीदाबाद ( काजल चंदेल )। जहां हरियाणा सरकार नशे को लेकर पूरी तरह से सख्त है। उसके बावजूद नशाखोर नशा करने के लिए कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेते है। उनपर सरकार की पाबंदियों का कोई असर नहीं पड़ता। उन्हें तो बस केवल नशा करना है. इस नशाखोरी में अधिकतर युवा शामिल है।
दिल्ली से सटे फरीदाबाद में नशे का कारोबार फल फूल रहा है। तो चलिए हम आपको बताते है एक ऐसी जगह जहां नशेड़ियों का अड्डा चलता है। डबुआ कालोनी का बूस्टर जोकि डबुआ थाने से करीब 800 मीटर की दुरी पर है। आठ सालों से बन कर तैयार बूस्टर अभी चालू भी नहीं हुआ है। नशेड़ियों ने उस पर कब्जा करके उसे नशे का अड्डा बना दिया है। जहां से लोगों को पानी मिलना चाहिए। वहां से अब नशे के इंजेक्शन, शराब और न जाने कितने नशे परोसे जाते है। शाम ढलते ही नशेड़ी आ जाते है और रात भर नशा करते है। जब स्थानीय लोगों की शिकायतें हिंदुस्तान तहलका तक पहुंची। तो हिंदुस्तान तहलका की टीम मौके पर पहुंची। तो वहां पर नशे के खाली पड़े कई इंजेक्शन, चारों तरफ शराब की टूटी बोतले पड़ी हुई थी। कई प्रकार के नशे के पाउच, नशीली दवाइयों की शीशियां भी पड़ी हुई थी। स्थानीय लोग सामने आने से कतरा रहे थे। वो कैमरे के सामने कुछ भी बोलना नहीं चाहते थे। परन्तु कैमरे के पीछे अपनी परेशानी छुपा भी नहीं सके। लोगों ने बताया की शाम होते ही जहां नशेड़ियों का जमावड़ा हो जाता है। बहुत गन्दी महक पूरे एरिये में फैल जाती है। शाम के समय उस जगह से महिलाओं का गुज़ाना भी मुश्किल हो जाता है। लोगों का कहना है कि नगर निगम की लापरवाही के कारण उनको काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार इसकी शिकायत कर रहे है। लेकिन पुलिस प्रशासन इसको नज़र अंदाज़ कर रहा है। इसके आलावा इस बूस्टर से 15 मीटर की दूरी पर एक मंदिर भी है। महिलाओं का कहना है कि नशेड़ियों के कारण मंदिर अपवित्र होता जा रहा है। इन नशेड़ियों की वजह से हम मंदिर के दर्शन भी नहीं कर पाते है। हमे बहुत डर लगता है। इन सबका हमारे बच्चों क्या असर पड़ेगा इसलिए बच्चो को भी घर से नहीं निकलने देते है।
स्कूल कॉलेजों में शुरू हुआ 'धाकड़' कार्यक्रम
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदेश को नशामुक्त बनाने के लिए उक्त एक्शन प्लान के तहत स्कूल, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में धाकड़ कार्यक्रम की शुरुआत की थी। धाकड़ यानी हिम्मत वाला व्यक्ति। उन्होंने कहा कि क्लास के पांच बच्चों का एक ग्रुप बनाया जाएगा, जो सुस्त, एकाकी रहने वाले व चोरी छिपे नशा करने वाले बच्चे की पहचान करेंगे। उसकी सूचना क्लास टीचर यानी सीनियर धाकड़ को देंगे। सीनियर धाकड़ इसकी रिपोर्ट नोडल धाकड़ यानी अपने प्रिंसिपल/हेड मास्टर को करेंगे। इसके क्रियान्वयन और सुपरविजन के लिए राज्य, जिला, उपमंडल, कलस्टर और गांव/वार्ड स्तर पर मिशन टीमें, नशे से ग्रस्त व्यक्ति की काउंसिलिंग, उपचार व पुनर्वास के लिए काम करेंगी।