श्रीलंका में हालात बेकाबू, प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे से इस्तीफे की मांग
श्रीलंका इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। गंभीर आर्थिक संकट झेल रहे श्रीलंका में कंगाली जैसी स्थिति है।

श्रीलंका इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। गंभीर आर्थिक संकट झेल रहे श्रीलंका में कंगाली जैसी स्थिति है। इस कारण वहां के लोग सरकार के खिलाफ आक्रोशित हैं। सड़क पर उतरे लोगों की भीड़ बेकाबू हो गई है। श्रीलंका में इमरजेंसी लगा दी गई है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर मालदीव भाग चुके हैं। वहीं प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के खिलाफ भी लोग आक्रोशित हैं। श्रीलंकाई संविधान के अनुसार, अगर राष्ट्रपति इस्तीफा देते हैं तो पीएम कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं। ऐसे में रानिल विक्रमसिंघे से भी इस्तीफे की मांग की जा रही है। श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने संविधान के अनुच्छेद 40(1)(सी) के तहत सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश (अध्याय 40) के अनुच्छेद 02, 1959 के अधिनियम संख्या 08 द्वारा संशोधित, 1978 के कानून संख्या 6 और 1988 के अधिनियम संख्या 28 द्वारा उन्हें निहित शक्तियों के आधार पर आपातकाल की घोषणा की है।
इमरजेंसी यानी आपातकाल का सीधा मतलब है, संकट या विपत्ति का समय। कई देशों के संविधान में आपातकाल को लेकर प्रावधान होते हैं, जिनका इस्तेमाल संकट की स्थिति में किया जा सकता है। संकट की स्थिति से मतलब है, जब देश पर किसी आंतरिक या बाहरी रूप से खतरे की आशंका हो या फिर देश में आर्थिक रूप बड़ा संकट आन पड़ा हो।
श्रीलंका में इमरजेंसी के हालात बनते रहे हैं। कई बार वहां इमरजेंसी लगाई जा चुकी है। ब्रिटिश शासन से 1948 में यह देश आजाद हुआ और उसके बाद के 74 वर्षों में श्रीलंका ने एक लंबा वक्त इमरजेंसी को झेलते हुए बिताया है। सबसे पहले वर्ष 1958 में वहां आपातकाल लगाया गया था। सिंहली को ओनली लैंग्वेज पॉलिसी के तौर पर अपनाया गया था। इसी वजह से वहां इमरजेंसी लगाई गई थी। बता दें कि श्रीलंका में लंबे समय तक सिंहली साम्राज्य का वर्चस्व रहा है। सिंहली साम्राज्य के शासनकाल में पुर्तगालियों को भी किनारे होना पड़ा था। 14वीं सदी में सिंहली शासनकाल में देश की राजधानी कोलंबो नहीं, बल्कि श्रीजयवर्धनापुरा कोटे शहर था। 16वीं सदी में जब पुर्तगाली आए तो सिंहली साम्राज्य उनका विरोध करते रहे और आक्रमण भी. पुर्तगाली अपना व्यापार और साम्राज्य नहीं बढ़ा पा रहे थे, तो उन्होंने राजधानी ही बदल डाली और कोलंबो शिफ्ट कर लिया। उनकी एक अलग कहानी है। खैर 1958 के बाद 1971 में लेफ्ट विंग जनता विमुक्ति पेरामुना के विद्रोह के कारण एक बार फिर इमरजेंसी लगाई गई थी।
श्रीलंका में एक समय ऐसा था, जब सबसे लंबी अवधि तक के लिए इमरजेंसी लगी थी। इमरजेंसी की शुरुआत वर्ष 1983 थी और इमरजेंसी की वजह लिट्टे का आंदोलन थी। यह इमरजेंसी 27 वर्षों तक लगी रही और 2011 में इसको हटाया गया। लिट्टे (LTTE) यानी तमिल समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, जिन्हें तमिल टाइगर्स के नाम से भी जाना जाता है। यह संगठन श्रीलंका में अलग राज्य की मांग पर अड़ा था और इनके आंदोलन की वजह से देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। इस कारण 1983 से 2011 तक देश में इमरजेंसी लागू रही। 2018 में भी तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने मार्च में देश के कुछ हिस्सों में मुस्लिम विरोधी हिंसा को रोकने के लिए आपातकाल की घोषणा की थी। हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि आगजनी के कारण संपत्ति का भी नुकसान हुआ था। मोटा-मोटी देखा जाए तो श्रीलंका ने करीब चार दशक की अवधि तक आपातकाल झेला है।