Mangal Pandey Death Anniversary: 1857 के विद्रोह की पहली गोली चलाने वाले मंगल पांडे की कहानी
1857 के सिपाही विद्रोह के नायक मंगल पांडे की जयंती आज है। एक बार फिर पढ़ें उनके बारे में प्रकाशित विशेष लेख

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडे(Mangal Pandey) को आज ही के दिन फांसी दी गई थी। देश को आजाद कराने का पहला श्रेय मंगल पांडे को जाता है। उनकी स्वतंत्रता की चिंगारी ने ब्रिटिश सरकार को इतना डरा दिया कि नियत तिथि से दस दिन पहले 8 अप्रैल 1857 को उन्हें पश्चिम बंगाल की बैरकपुर जेल में फांसी दे दी गई।
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को बलिया के निकट नगवा गांव में सरयूपारी ब्राह्मण के यहाँ हुआ था। पिता का नाम दिवाकर पाण्डेय तथा माता का नाम अभय रानी पाण्डेय था। 22 साल की उम्र में, वह एक सैनिक के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में शामिल हो गए। समय के साथ बदले हालात ने मंगल पांडे को ब्रिटिश शासन का दुश्मन बना दिया।
वर्ष 1850 में सैनिकों को एनफील्ड राइफल दी गई थी। दशकों पुराने ब्राउन बास की तुलना में शक्तिशाली और सटीक, इस एनफील्ड गन को भरने के लिए कारतूस को दांतों की मदद से खोलना पड़ा। कार्ट्रिज कवर को पानी की सीलिंग से बचाने के लिए इसमें ग्रीस था। इसी बीच खबर मिली कि कारतूस की चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनती है। सैनिकों ने इसे ब्रिटिश सरकार की सोची समझी साजिश के तहत हिंदू-मुसलमानों के धर्म के साथ खिलवाड़ करना समझा। तब मंगल पांडे ने कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया।