राज्यसभा चुनाव में गलत ढंग से वोट करने वाले कांग्रेसी विधायक का नाम सार्वजनिक नहीं

आज से तीन सप्ताह पूर्व 10 जून को हरियाणा से राज्यसभा की 2 सीटों के निर्वाचन हेतु करवाए गए मतदान में भाजपा के उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े कार्तिकेय शर्मा दोनों निर्वाचित घोषित किये गए थे।

राज्यसभा चुनाव में गलत ढंग से वोट करने वाले कांग्रेसी विधायक का नाम सार्वजनिक नहीं

चंडीगढ़ - आज से  तीन सप्ताह पूर्व 10 जून को हरियाणा से राज्यसभा की 2 सीटों के निर्वाचन हेतु करवाए गए मतदान में भाजपा के उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार और निर्दलीय प्रत्याशी  के तौर पर चुनाव लड़े कार्तिकेय शर्मा दोनों निर्वाचित घोषित किये गए थे। वहीं कांग्रेस के अजय माकन बहुत कम अंतर से मतगणना के दूसरे राउंड में  कार्तिक से पिछड़ने  कारण  चुनाव हार गए थे।  

बहरहाल, मतगणना के बाद यह निकल कर सामने आया  कि मतदान में माकन को हरियाणा विधानसभा सदन में कांग्रेस के कुल 31 में से 30 विधायकों के वोट प्राप्त हुए थे परन्तु उन 30 में से एक पार्टी विधायक द्वारा डाला गया वोट इनवैलिड (अमान्य) होने के कारण रद्द कर दिया गया क्योंकि वह सही ढंग से नहीं डाला गया था। उसमें  कांग्रेस प्रत्याशी  माकन के नाम के समक्ष 1 नंबर की संख्या  लिखने के बजाए उस कांग्रेस  विधायक द्वारा टिक मार्क लगा दिया गया था जोकि नियमानुसार गलत है जिस कारण  मतगणना में उस वोट की गणना नहीं की गयी  थी एवं माकन को प्राप्त कुल वोट 30 से एक और घटकर 29 हो गए थे। 

दूसरी ओर कांग्रेस के बागी विधायक कुलदीप बिश्नोई ने भी उनका वोट माकन को नहीं डाला था। बहरहाल, अगर उपरोक्त दोनों बातों में से एक भी न होती  अर्थात अगर कांग्रेस के उस एक विधायक ने सही ढंग से  वोट डाला होता या फिर कुलदीप ने माकन के पक्ष में मत डाला होता, तो कांग्रेस के उम्मीदवार माकन राज्यसभा चुनाव जीत सकते थे।  

अब जबकि जगजाहिर हो गया है कि कांग्रेस के 31 विधायकों में से कुलदीप ने पार्टी  प्रत्याशी माकन को वोट नहीं दिया और ऐसा   उन्होंने स्वयं भी सार्वजनिक स्वीकार कर लिया है और पार्टी ने उनके विरूद्ध कार्रवाई करते हुए उन्हें सभी पार्टी पदों से हटा भी  दिया परन्तु  जहाँ तक एक कांग्रेस विधायक द्वारा गलत ढंग से  वोट डालने का विषय है, तो चुनाव सम्पन्न होने के तीन सप्ताह बाद भी पार्टी द्वारा उसका  नाम  सार्वजनिक नहीं किया गया है।    

इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि वर्ष 2003 में देश  की संसद द्वारा लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 में किये गए।  संशोधन  के फलस्वरूप राज्यसभा चुनावों में मतदान ओपन बैलट से होता है अर्थात  उस चुनाव में हर उस राजनीतिक पार्टी , जिसके  सदस्य सम्बंधित  विधानसभा सदन के सदस्य ( विधायक) होते हैं, द्वारा  पार्टी के किसी  वरिष्ठ नेता/पदाधिकारी  को राज्यसभा चुनाव के मतदान में  अधिकृत एजेंट के रूप में नियुक्त किया जाता है।  जिसका  कार्य यह सुनिश्चित करना होता है  कि उसकी पार्टी के विधायकों ने मतदान के दौरान किस उम्मीदवार  को  वोट डाला है।  मतदान के दिन  सभी  राजनीतिक पार्टियों के अधिकृत एजेंट मतदान केंद्र के अंदर ही बैठते हैं एवं जब सम्बंधित पार्टी का विधायक मतदान के प्रेसाइडिंग आफिसर से  बैलट पेपर प्राप्त करने के बाद उस पर अपना वोट मार्क करता है अर्थात वह चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के सम्बन्ध में उसकी पहली, दूसरी, तीसरी आदि प्राथमिकता अंकित करता है तो उसके बाद ऐसे भरे मतपत्र   को बैलट बॉक्स में डालने से  पूर्व उस विधायक द्वारा उसकी  पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाना अनिवार्य होता है. अगर वह विधायक  ऐसा नहीं करता   है, तो उसका वोट अमान्य हो जाता है एवं उसे  रद्द कर दिया जाता है। बेशक उसने मतपत्र  को  बैलट बॉक्स में डाल भी दिया हो. यही नहीं, अगर उस विधायक ने पार्टी के अधिकृत एजेंट के अलावा  किसी अन्य को उसके द्वारा दिया गया  वोट दिखाया, तो उस परिस्थिति में भी उसका वोट  रद्द कर दिया जाता है।  

अब बेशक मतदान में कांग्रेस के बागी विधायक  कुलदीप बिश्नोई ने उनकी पार्टी उम्मीदवार माकन को वोट नहीं डाला था   परन्तु उसके बावजूद उन्होंने उनका  वोट कांग्रेस के अधिकृत एजेंट विवेक बंसल को दिखाने के बाद ही बैलट बॉक्स में डाला था क्योंकि अगर वह  ऐसा नहीं करते, तो वह वोट मान्य भी न होता।  इस प्रकार बंसल को आरम्भ से ही पता था कि कुलदीप ने पार्टी प्रत्याशी की बजाए विरोधी उम्मीदवार को वोट डाला है। 

बहरहाल, जहाँ तक एक  अन्य कांग्रेस विधायक द्वारा गलत तरीके से वोट डालने का विषय है, तो यह स्वाभाविक है कि उस विधायक ने भी बैलट बॉक्स में  वोट डालने से पूर्व बंसल को अवश्य दिखाया होगा। अब क्या बंसल उस समय स्पष्ट तौर पर  नहीं देख पाए न नहीं  कि उस  विधायक ने  गलत ढंग से  वोट डाला  अर्थात वह किसी और कारण  से उस विधायक का नाम सार्वजानिक करने में मौन है, यह तो वही बता सकते है।  

हालांकि हेमंत ने बताया कि अगर ऐसा मान भी लिया जाए  कि किसी कारणवश बंसल मतदान  के दौरान उस कांग्रेस विधायक का वोट सही प्रकार से नहीं देख पाए जिसने गलत ढंग से वोट डाला था परन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य है कि निर्वाचन संचालन नियमावली, 1961  के नियम 84 (2 ) में स्पष्ट प्रावधान है कि  मतगणना के पश्चात नतीजे घोषित होने के बाद एवं रिटर्निंग ऑफिसर (आर.ओ.) द्वारा मतपत्रों का  रिकॉर्ड सील करने से पूर्व वह हर सम्बंधित पार्टी के  अधिकृत एजेंट को यह  जांच करने  की अनुमति देगा कि उसकी पार्टी के हर  विधायक ने  चुनाव में  किस उम्मीदवार के  पक्ष में वोट डाला है।  

हेमंत ने बताया कि अब इस सबके बीच प्रश्न यह उठता है कि क्या हरियाणा राज्यसभा चुनाव में रिटर्निंग ऑफिसर, आरके नांदल, जो हरियाणा विधानसभा के सचिव  हैं, ने नतीजों की घोषणा बाद मतपत्रों के पैकेट सील करने से पूर्व  क्या कांग्रेस के अधिकृत एजेंट विवेक बंसल को उनके पार्टी विधायकों द्वारा डाले गए वोटों की वेरिफिकेशन करवाई थी और अगर बंसल ने ऐसा किया था, तो क्या उन्हें तब भी यह पता नहीं चला कि कांग्रेस के किस विधायक ने गलत ढंग से वोट डाटा है और अगर बंसल ने उस समय भी वोटों को सही ढंग से वेरीफाई  नहीं किया, तो उनके कांग्रेस के अधिकृत एजेंट बनने पर ही सवाल उठते हैं।