उत्तराखंड में ट्रेन दुर्घटना में हुई थी मादा हाथी की मौत
हिदुस्तान तहलका / शिवांगी चौधरी – मथुरा। उत्तराखंड में ट्रेन हादसे में एक मादा हाथी की मौत हो गई। इस हादसे में मादा हाथी के साथ मौजूद उसकी बच्ची गंभीर रूप से घायल हो गईं। घायल हाथी के बच्चे का वन विभाग ने इलाज किया। लेकिन बेहतर इलाज के लिए उसे मथुरा में हाथियों के संरक्षण का कार्य कर रही सामाजिक संस्था वाइल्ड लाइफ एसओएस को सौंपा। फिलहाल बच्चे का मथुरा के हाथी अस्पताल में इलाज चल रहा है।
20 दिन पहले हुआ हादसा
उत्तराखंड में जिम कार्बेट नेशनल पार्क के पास करीब बीस दिन पहले मादा हाथी अपनी बच्ची के साथ रेल लाइन क्रॉस कर रही थी। इसी दौरान वहां से गुजरी तेज रफ्तार ट्रेन ने मादा हाथी और उसके बच्ची के टक्कर मार दी। इस हादसे में मादा हाथी की मौके पर मौत हो गई जबकि उसकी बच्ची उछल कर पास ही एक खेत में जा गिरी।
वन विभाग कर रहा था उपचार
हादसे के बाद मौके पर पहुंचे उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों ने मादा हाथी के शव को कब्जे में ले लिया और घायल उसके बच्चे को इलाज के लिए अपने साथ ले गए। वन विभाग ने घायल हाथी के बच्चे का इलाज किया जिससे उसकी जान बच गई। लेकिन उम्मीद के मुताबिक राहत न मिलने पर गंभीर रूप से घायल हाथी के बच्चे को बेहतर इलाज के लिए भारत के पहले एकमात्र मथुरा में स्थित हाथी अस्पताल के लिए भेज दिया। मथुरा में हाथी संरक्षण के लिए काम कर रही सामाजिक संस्था वाइल्ड लाइफ एसओएस द्वारा संचालित हाथी अस्पताल में इस 9 महीने की हथिनी को लाया गया। जहां इसका नाम बानी रखा जिसका मतलब है धरती माता। बानी हाथी के रीढ़ और कूल्हे के जोड़ों में चोट आई है। जिसकी वजह से वह सही से अपने पैरों पर खड़े भी नहीं हो पा रही।
दो दिन पहले लाया गया हाथी अस्पताल
वाइल्डलाइफ एसओएस के उप-निदेशक डॉ. इलैया राजा ने बताया कि बानी को दो दिन पहले अस्पताल में लाया गया। बानी के कमर में एक संक्रमित घाव है, जिसका वर्तमान में इलाज किया जा रहा है। उसके अगले पैरों को अच्छी तरह हिलते हुए देखकर खुशी हुई। शुरुआत में रीढ़ की हड्डी में चोट का संदेह था, लेकिन उसकी पूंछ में हलचल, पाचन और शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली से संकेत मिलता है कि उसका शरीर इलाज पर अच्छी प्रतिक्रिया दे रहा है।
उच्च स्तर की दी जा रही चिकित्सा
वाइल्ड लाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा घायल बानी को मथुरा के हाथी अस्पताल में स्थानांतरित करने हेतु शीघ्र अनुमति जारी करने के लिए उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक के आभारी हैं। उसे ठीक होने और जीवित रहने का हर मौका देने के लिए उच्च स्तर की पशु चिकित्सा देखभाल प्रदान की जा रही है। वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव गीता शेषमणि ने कहा ट्रेन की टक्कर से हर साल हजारों जानवर मारे जाते हैं। रेलवे देश भर में वन्य जीव गलियारों में गति को तुरंत कम कर सकता है। जिससे हाथियों और अन्य वन्य जीवों को बचाया जा सके। आधुनिक ज़माने में यह संभव है की हाथियों के रेलवे ट्रैक पार करने की जानकारी उन्हें मिल सके और ट्रेन को सचेत कर सके।
हर साल होती है 20 हाथियों की ट्रेन हादसे में मौत
वाइल्डलाइफ एसओएस में संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक बैजू राज एमवी ने कहा हथिनी की बच्ची बानी 9 महीने की है। संक्रमण से बचाव के लिए हर दिन उसकी सफाई और मालिश की जाती है और उसके घावों पर पट्टी बाँधी जाती है। इसके अतिरिक्त, उसके जोड़ों के व्यायाम के लिए लेजर थेरेपी और फिजियोथेरेपी भी प्रदान की जा रही है। ट्रेनों से हाथियों की मौत को रोका जा सकता है। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार 2010 और 2020 के बीच ट्रेन की टक्कर में लगभग 200 हाथी मारे गए। मतलब औसतन हर साल लगभग 20 हाथी मारे गए। ट्रेन की टक्कर से हाथियों की मृत्यु की समस्या को ख़त्म करने के लिए वाइल्ड लाइफ एसओएस ने एक अभियान शुरू किया है, जिससे इस समस्या से निपटा जा सके।