-बोंदवाल परिवार लुप्त हो रही कला को जीवित रखने के लिए कर रहा है संघर्ष
हिन्दुस्तान तहलका / दीपा राणा
सूरजकुंड / फरीदाबाद – 37वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला में देशी-विदेशी शिल्पकार पर्यटकों का ध्यान अपनी कृतियों की ओर खींच रहे हैं। पर्यटक भी इन शिल्पकारों की कृतियों की खूब तारीफ कर रहे हैं तथा इन शिल्पकारों का हौंसल भी बढ़ा रहे हैं। ऐसा ही बहादुरगढ़ का बोंदवाल परिवार तीन पीढ़ियों से वुड कार्विंग की कला को निरंतर जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। इस परिवार की तीनों पीढ़ियों को वुड कार्विंग में योगदान के लिए शिल्प गुरू तथा राष्टï्रीय पुरूस्कारों से नवाजा जा चुका है।
यह परिवार युवाओं को भी इस कला का निशुल्क प्रशिक्षण देने के साथ-साथ इनका मार्गदर्शन भी कर रहा है। शिल्प मेला परिसर में स्टॉल नंबर-1245 पर राजेंद्र प्रसाद बोंदवाल द्वारा वुड कार्विंग की सर्वश्रेष्ठï कृतियों को प्रदर्शित किया गया है। इस स्टॉल पर 50 रुपए से 1 लाख 50 हजार रुपए मूल्य की लकड़ी की कृतियां उपलब्ध हैं। डेढ लाख रुपए मूल्य की बॉक्स की कृति को बनाने में लगभग 5 माह का समय लगा है। मूलरूप से रोहतक जिला के करोंथा गांव से यह परिवार ताल्लुक रखता है तथा वर्तमान में बहादुरगढ़ निवास कर रहा है। शिल्पकार वुड कार्विंग में चंदन की लकड़ी के स्थान पर अब कदम, शीशम एवं आमनूस की लकड़ी का प्रयोग कर रहे हैं। यह लकड़ी इन्हें स्थानीय काठ मंडी में आसानी से उपलब्ध हो रही है।
बोंदवाल परिवार के साथ-साथ हरियाणा राज्य के लिए यह गौरव की बात है कि इस परिवार के वुडन पैनल को देश की नई संसद भवन की दीवार पर लगाया गया है। यह परिवार इस दौर में भी संयुक्त परिवार की संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है। इस परिवार के शिल्पकारों द्वारा स्थानीय स्तर के अलावा ट्यूनिशिया, श्रीलंका, ओमान के मसकट आदि में भी इस कला का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। यह परिवार स्थानीय स्तर पर युवाओं को निशुल्क प्रशिक्षण के साथ-साथ मार्गदर्शन भी कर रहा है। वर्तमान में बोंदवाल परिवार द्वारा लगभग 60 युवाओं को ऐसा प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
यह कार्य नीरज बोंदवाल के दादा जय नारायण बोंदवाल ने शुरू किया था, जिन्हें हाथी के दांत पर नक्काशी के लिए वर्ष 1996 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इनके पुत्र महावीर प्रसाद बोंदवाल को हाथी दांत पर जाली पर बिना जोड के 16 हाथियों की कृति के लिए वर्ष 1979 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनके भाई राजेंद्र प्रसाद को 1984 में हाथी दांत पर नक्काशी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2015 में शिल्प गुरू पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। महावीर प्रसाद बोंदवाल के पुत्र चंद्रकांत बोंदवाल को बादाम के छिलके पर नक्काशी के लिए 2004 में राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा चंदन की लकड़ी पर नक्काशी के लिए यूनेस्को अवॉर्ड प्रदान किया गया है। उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार के समकक्ष नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट से भी 2015 में पुरस्कृत किया गया है। इनके छोटे भाई नीरज बोंदवाल को वर्ष 2015 में राज्य पुरस्कार से नवाजा गया है।