भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व्हाट्सऐप पर ‘‘प्रधानमंत्री की ओर से पत्र’’ भेजकर मतदाताओं से जुड़ने का प्रयास कर रही है और नरेन्द्र मोदी सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए मतदाताओं से ‘फीडबैक’ ले रही है।
व्हाट्सऐप के भारत में हर महीने 50 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता होते हैं।
भाजपा ने ‘माय फर्स्ट वोट फॉर मोदी’ वेबसाइट शुरू की है जिसमें मतदाता मोदी के लिए वोट करने का संकल्प ले सकते हैं और अपनी पसंद की वजह बताते हुए एक वीडियो अपलोड कर सकते हैं। वेबसाइट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में किए गए विकास कार्यों को दिखाते कई लघु वीडियो भी हैं। वहीं, कांग्रेस (Congress) ‘राहुल गांधी व्हाट्सऐप समूह’ चलाती है जिसमें राहुल लोगों से संवाद करते हैं और उनके सवालों का जवाब देते हैं। व्हाट्सऐप (whatsapp) पर सूचनाओं के प्रसार की निगरानी जिला स्तर पर की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह जनता तक पहुंचे और पार्टी के मतदाता आधार को मजबूत करे।
चुनावी विश्लेषक और समीक्षक अमिताभ तिवारी ने कहा, ‘‘जिस भी राजनीतिक दल के अधिक व्हाट्सऐप समूह हैं, वह मतदाताओं से तेजी से और बेहतर तरीके से संवाद कर सकता है। इससे उन्हें तेजी से अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने और मतदाताओं को प्रभावित करने में मदद मिलती है।’’ तिवारी के अनुसार, एक समय सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए सबसे पसंदीदा मंच रहा फेसबुक अब राजनीतिक पेज पर विज्ञापनों संबंधी कई पाबंदियों के कारण राजनीतिक दलों को पसंद नहीं रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘पार्टियां ऐसे सोशल मीडिया मंच (social media platform) को चुनती है जो उन्हें बगैर ज्यादा पाबंदियों के और बड़े उपयोगकर्ता आधार के साथ तेजी से जनता से जोड़ने में मदद करते हैं। इंस्टाग्राम और ट्विटर (अब एक्स) जैसे कई अन्य मंच हैं जो जनता के एक खास वर्ग की आवश्यकताओं को पूरी करते हैं और उनके अलग-अलग प्रारूप हैं। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया विज्ञापनों (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक, ‘बल्क’ एसएमएस, केबल वेबसाइट, टीवी चैनल आदि) पर 325 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जबकि कांग्रेस ने 356 करोड़ रुपये खर्च किए।
‘पॉलिटिक एडवाइजर’ (‘Political Advisor’) के संस्थापक और आम आदमी पार्टी (AAP) के आईटी प्रकोष्ठ के पूर्व प्रमुख अंकित लाल ने बताया कि कोविड-19 महामारी के बाद सूचना के एक माध्यम के रूप में सोशल मीडिया के प्रति दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है। उन्होंने कहा, ‘‘कई राजनीतिक दल मतदाताओं से जुड़ने के लिए अपने चुनाव प्रचार अभियान में पहले डिजिटल माध्यम को चुनते हैं क्योंकि मतदाता सूचना पाने के लिए काफी हद तक सोशल मीडिया पर निर्भर हैं। सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स एक और महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं जिनके जरिए पार्टियां उन लोगों का प्रभावित करने की कोशिश करती हैं जो वोट नहीं करते लेकिन धारणा बनाने में भूमिका निभाते हैं।’’
पिछले कुछ महीनों में कई नेता युवा दर्शकों से जुड़ने के लिए मशहूर सोशल मीडिया ‘इन्फ्लूएंसर्स’ (सोशल मीडिया पर लोगों पर प्रभाव डालने वाले लोग) के यूट्यूब चैनलों पर दिखायी दिए हैं।एस. जयशंकर, स्मृति ईरानी, पीयूष गोयल और राजीव चंद्रशेखर (S. Jaishankar, Smriti Irani, Piyush Goyal and Rajiv Chandrashekhar) जैसे भाजपा नेताओं ने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को साक्षात्कार दिए हैं जिनके यूट्यूब पर 70 लाख से अधिक फॉलोअर हैं।कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी यात्रा और भोजन के वीडियो पॉडकास्ट ‘कर्ली टेल्स’ की संस्थापक कामिया जानी से भोजन पर बातचीत की थी।
चुनावी नतीजों पर सोशल मीडिया प्रचार की महत्ता बताते हुए लाल ने कहा, ‘‘औसतन दो लाख की आबादी वाले किसी विधानसभा क्षेत्र में 40 फीसदी तक इंटरनेट पहुंच के साथ डिजिटल माध्यमों के जरिए 75,000 से 80,000 लोगों को प्रभावित करना संभव है। किसी भी विधानसभा चुनाव में 5,000 वोटों का अंतर भी किसी भी जीत-हार का अच्छा अंतर होता है।’’ इस बीच, राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया पर प्रचार को विनियमित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि निर्वाचन आयोग को प्रौद्योगिकी कंपनियों से चुनावी निकाय के नियमों का उल्लंघन करने वाले पोस्ट हटाने के लिए उनके तंत्र को मजबूत करने पर बात करनी चाहिए।