⇒ लट्ठमार होली का मतलब ‘लाठी बजाकर होली मनाना’
हिंदुस्तान तहलका / शिवांगी चौधरी
मथुरा – मथुरा (Mathura) में होली का प्रमुख त्योहार शुरू हो गया है और आज सोमवार यानी 18 मार्च को राधारानी की नगरी बरसाना में बड़े धूमधाम से लट्ठमार होली खेली गई और मंगलवार को नंदगांव (नंदगांव) में लट्ठमार होली खेली जाएगी। आज के दिन बरसाना में होली मनाने के लिए नंदगांव के युवक आए और बरसाने की हुरियारिन ने उन पर जमकर लट्ठ बरसाई।
इस दौरान हुरियारिन यह नहीं देखती है कि वो जिसको पीट रही है वो पति है यह जेठ या ससुर। क्योंकि उनके चेहरे पर घूंघट होता है। ब्रज की इस अनोखी लट्ठ मार होली को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। बरसाना में जमकर रंग गुलाल उडाए जा रहे हैं। महिलाएं फाक गा रही हैं। पूरे बरसाने में जश्न का माहौल है। बरसाने की गलियों श्रद्धा का सैलाब है। कहीं भी पैर रखने को जगह नहीं है। 10 लाख टूरिस्ट होली देखने मथुरा पहुंचे हैं।
होलिका दहन से पांच दिन पहले होती है लट्ठमार होली
वैसे तो रंगों का त्योहार होली पूरे भारत में सभी जगह बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन ब्रजवासियों के होली मनाने का अपना अलग ही अंदाज है। यहां पर कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल की, कहीं लड्डू, तो कहीं लट्ठमार होली मनाने की परंपरा है। बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली अपने अनूठे अंदाज के लिए दुनियाभर में जानी जाती है। यहां होलिका दहन से पांच दिन पहले विश्व-प्रसिद्ध लट्ठमार होली मनाई जाती है.
लट्ठमार होली के लिए जब नंदगांव के हुरियारे बरसाना पहुंचते हैं तो यहां प्रियाकुंड पर भांग और ठंडई पिलाकर उनका स्वागत किया जाता है। उसके बाद ये सभी राधारानी मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं, जहां मंदिर प्रांगण में ही बरसाना के गोस्वामी समाज के लोगों के साथ मिलकर होली के रसिया का गायन करते हैं। इसे यहां ‘समाज-गायन’ कहा जाता है। उसके बाद मंदिर से निकलकर हुरियारे अपने हाथों में ढाल लेकर रंगीली गली से दौड़ते लट्ठमार चौक तक पहुंचते हैं। वहां पहले से हुरियारिनें हाथ में लट्ठ लिए उनका इंतज़ार कर रही होती हैं। जब दोनों पक्षों का आमना-सामना होता है तो एक-दूसरे के साथ रसिया गाकर नाचते हैं और उसके बाद शुरू होती है लट्ठमार होली।
पांच हजार साल से चली खेली जा रही लट्ठमार होली
कहते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत पांच हजार साल से भी पहले हुई थी। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि जब भगवान कृष्ण ब्रज छोड़कर द्वारिका चले गए और उसके बाद फिर से जब बरसाना लौटे तो उस समय ब्रज में होली का समय था। तब कृष्ण के बिछड़ने से दुखी राधा और उनकी सखियों ने उनके वापस आने पर अपने गुस्से का इजहार किया। राधा और उनकी सब सखियां चाहती थीं कि कृष्ण कभी उनसे दूर ना हों, इसलिए जब कृष्ण ने उन्हें मनाने की कोशिश की तो राधा और उनकी सखियों ने अपने प्यार भरे गुस्से का इजहार करते हुए कृष्ण के साथ लट्ठमार होली खेली थी। तब से लेकर आज तक वही परंपरा चली आ रही है। बरसाना राधारानी का गांव है और नंदगांव में नंदबाबा का घर होने की वजह से इसे कृष्ण के गांव के रूप में भी जाना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बरसाना स्थित राधारानी मंदिर और नंदगांव के नंद भवन में स्थित मंदिर की सेवा-पूजा का अधिकार गोस्वामी समाज को ही है, इसीलिए गोस्वामी समाज की महिलाओं और पुरुषों के बीच ये विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली खेली जाती है। बरसाना में होने वाली लट्ठमार होली में यहां की हुरियारिनें राधा की सखी के रूप में होती हैं और नंदगांव से होली खेलने बरसाना आने वाले हुरियारे कृष्ण के ग्वाल के भाव में यहां आते हैं।