लोकसभा चुनाव में ‘डिजिटल प्लेटफॉर्म’ की अहम भूमिका
नितिन गुप्ता, मुख्य संपादक / हिन्दुस्तान तहलका
फरीदाबाद – सतयुग एवं द्वापर युग वाली मायावी दुनिया फिर से दिखने लगी है। साइंस एवं तकनीक के वर्तमान समय में ‘डीपफेक टेक्नोलॉजी’ इसी का पर्यायवाची बनकर तेजी से उभर रही है। लोकसभा चुनाव में इसबार डिजिटल प्लेटफॉर्म सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। इस प्लेटफॉर्म ने राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों की मतदाताओं तक पहुंच आसान कर दी है। लेकिन दूसरी तरफ इस तकनीक का एक स्याह पहलू भी धीरे धीरे सामने आ रहा है। चुनाव में नेताजी दिनभर पसीना बहाते हैं। खूब खर्च करते हैं। लेकिन शाम होते – होते एक एनिमेटेड तस्वीर या वीडियो ऐसा वायरल होता है कि उनकी दिन भर की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। यही ‘डीपफेक टेक्नोलॉजी’ कहलाती है। इस तकनीक के माध्यम से विशेषज्ञ टूल की मदद से हूबहू नकली चेहरा और उसकी आवाज पर्दे पर उतार देते है। देखने वालों को भ्रम पैदा हो जाता है।
डीपफेक वीडियो बना रहे राजनीतिक पार्टियां
डीपफेक ने राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों की मतदाताओं तक पहुंच बहुत आसान बना दी है। कई देशों में चुनाव से पहले डीपफेक एक चुनौती बनकर उभरा है। क्योंकि इसके माध्यम से नैतिकता और अनैतिकता में एक पतली सी लकीर है जो भ्रम की संभावना पैदा कर देती है। भारत में लोकसभा चुनाव-2024 में इसका जमकर इस्तेमाल हो रहा हैं। लोकसभा चुनावों में 19 अप्रैल को मतदान शुरू होने वाला है। राजनीतिक दल शक्तिशाली एआई टूल्स का इस्तेमाल कर डीपफेक वीडियो बना रहे हैं। इस तकनीक से लोकप्रिय चेहरों और उनकी आवाजों की ऐसी नकल बनवा रहे हैं की कभी कभी ऐसे वीडियो असली लगने लगते हैं।’डीपफेक टेक्नोलॉजी के बारे में सरकार और कैंपेन करने वालों ने भी चेतावनी दी है कि इस तरह के टूल्स का बढ़ता इस्तेमाल खतरनाक है। देश में चुनावों की सत्यनिष्ठा के प्रति एक तेजी से बढ़ता हुआ खतरा हैं। लेकिन फिर भी इनका इस्तेमाल भी खूब हो रहा है।
क्या सच है, क्या झूठ?
वीडियो में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सलाखों के पीछे बैठे गिटार बजा रहे हैं और एक लोकप्रिय फिल्मी गीत गा रहे हैं, “भुला देना मुझे, तुम्हें जीना है मेरे बिना.” ऐसी वीडियो से सच और झूठ का पता लगाना बड़ी चुनौती बन रहा है।
जिंदा हुए दिवंगत नेता
तमिलनाडु में मृत नेताओं की छवी और आवाजों का इस्तेमाल कैंपेन करने का एक लोकप्रिय तरीका बन गया है। एआईएडीएमके की दिवंगत नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जे जयललिता की आवाज में एक संदेश चल रहा है जिसमें राज्य में सत्ताधारी डीएमके की जम कर आलोचना की जा रही है।
कानून इसके बारे में क्या कहता है ?
भारत में डीपफेक साइबर क्राइम के लिए विशेष रूप से कोई कानून नहीं है, लेकिन इससे निपटने के लिए कई अन्य कानूनों को जोड़ा जा सकता है। यदि आप किसी गहरे नकली अपराध के शिकार हैं। किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो ऐसा है, तो ये कानूनी प्रावधान मददगार हो सकते हैं।
आईटी अधिनियम
“सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 डी में प्रावधान है कि जब किसी संचार उपकरण या कंप्यूटर संसाधन का उपयोग गलत इरादे से धोखाधड़ी करने के लिए किया जाता है,तो व्यक्ति को तीन साल तक की कैद हो सकती है या एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा,”
आईटी एक्ट का दूसरा भाग धारा 66ई है। गहरे नकली अपराध भी इस धारा का उल्लंघन करते हैं क्योंकि बड़े पैमाने पर मीडिया में उनकी छवियों को कैप्चर करने, प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन किया जाता है। इसके लिए तीन साल तक की कैद या दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
कॉपीराइट अधिनियम, 1957
अधिनियम की धारा 51 के तहत, किसी अन्य व्यक्ति की किसी भी संपत्ति का उपयोग करना। जिस पर बाद वाले व्यक्ति का विशेषाधिकार है,अधिनियम का उल्लंघन है।
डेटा संरक्षण विधेयक 2021
विधेयक में किसी भी प्रकृति के व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डाटा के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान है। एक बार जब विधेयक पारित हो जाता है और सरकार द्वारा अधिनियमित हो जाता है। तो यह डीप फेक सहित विभिन्न साइबर अपराधों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
डीप फेक सहित किसी साइबर अपराध की रिपोर्ट कैसे करें?
आप सीधे राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन 1930 पर कॉल कर सकते हैं। ऐसे अपराध की रिपोर्ट करने का दूसरा तरीका इस वेबसाइट पर विजिट करना होता है।
अर्जेंटीना में 2023 के चुनावों में ‘डीपफेक तकनीक’ का खेल देखा गया
विश्व स्तर पर चुनावों को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में पहले ही शुरू हो चुका है। अर्जेंटीना में 2023 के चुनावों में डीपफेक तकनीक का खेल देखा गया। पाकिस्तान में भी हाल ही में संपन्न हुए चुनाव में इस अनौखी एवं विवादास्पद तकनीक की बड़ी भूमिका रही।